ऐ ग़मज़दा दिल
ऐ ग़मज़दा दिल, तू मेरा अपना है,
चाहे हिन्दू का है या मुसलमा का है!
हर मज़हब का खुदा मुहब्बत है,
ये अंदाज़-ए -हैवानियत कहाँ का है?
क्यों दबा रहे हैं आवाज़ें?
ये काम तो तानाशाही का है!
हर आवाज़ बुलुंद हो, बेख़ौफ़ हो,
यही तो निशाँ आज़ाद हिन्दुस्तां का है!
अपने ही घरों में बंदी बना दिया?
ये कौन सा तरीका है, ये निज़ाम कहाँ का है?
इतना भी क्या खींचना के डोर ही टूट जाए,
उनकी रज़ा में ख़ुशी, मोहब्बत का सलीका है!
अँधेरा होता है तो फैलता जाता है,
दिया बुझा न पाए ये झोंका जो हवा का है!
आ मिल कर करें वो ख़्वाब पूरा,
जो पुर-अम्न जहाँ का है!
ऐ ग़मज़दा दिल, तू मेरा अपना है,
चाहे हिन्दू का है या मुसलमा का है!
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