सुनहरी सी लड़कियाँ!
यह कविता मेरी स्कूल और कॉलेज की दोस्तों के लिए है और शायद थोड़ी बहोत whatsapp को भी समर्पित है क्यूंकि मैं यहाँ अमेरिका में रहती हूँ मगर whatsapp के ज़रिये उनके साथ अक्सर जुड़ पाती हूँ! Thank you whatsapp for connecting me to my flavourful, gorgous, youthful, wise and compassionate friends!
ये सुनहरी सी लड़कियाँ,
ये सुनहरी सी लड़कियाँ,
इनकी आचारी बातें,
मेरे बादलों से सलेटी दिन में,
फुलकारी दुप्पट्टे सी लहराती हैं,
मेरे बोरिंग से लेंटिल सूप में
फुलकारी दुप्पट्टे सी लहराती हैं,
मेरे बोरिंग से लेंटिल सूप में
देसी घी का बंगार का लगा देतीं हैं!
इनकी तस्वीरें, इनकी बातें,
मानो वक़्त का उड़नखटोला हों,
मिंटो में कॉलेज पहुँचा देती हैं!
मिंटो में कॉलेज पहुँचा देती हैं!
whatsapp की पोस्ट इनकी,
कभी यादों का जलूस ले आती हैं,
कभी हंसी की फुआर,
तो कभी ज़िन्दगी के गहरी सीख,
मगर हर बार दिल बहला देती हैं!
हाँ, एक और बात है मज़े की,
इनके साथ वक़्त भी बाग़ी हो जाता है,
ज़िन्दगी की शाम जब होने को है,
जवानी की दोपहर लौट आ जाती है,
वही अल्हड़ बातें,
वही चटपटे चुटकुले,
कुछ देर को दुनिया ही पलट जाती है!
यह सुनहरी सी लड़कियाँ
और इनकी अचारी बातें!
टिप्पणियाँ
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
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