आवाज़ें
१४ फरवरी को पुलवामा में सुरक्षाबलों पर हुए हमले के बाद, देश में कई लोगों ने अपनी-अपनी आवाज़ उठाई। कुछ लोगों की आवाज़ खूब सुनी गयी, कुछ की नहीं। तब से आजतक लगभग ५० जवानों की जानें चली गयीं, उनके परिवार के लोगों के दुःख का अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है। उम्मीद है सरकार उनकी मदद के लिए हर संभव कदम उठा रही है। मगर जब घर का बेटा, पिता, या पति जब इस तरह अचानक चला जाता है तो कोई मदद उस घाव को नहीं भर कर पाती। ईश्वर उन जवानों की आत्मा को शांति दे और उन परिवारों ढाँढस और हिम्मत दे। ऐसे में हम जो इस घृणित घटना से आहात हैं, गुस्से में हैं, समझ नहीं आता की क्या करें! कई लोगों ने पाकिस्तान से जंग की भी मांग की, उन लोगों से अपने अंग्रेजी के ब्लॉग पे एक निवेदन किया है जिसे यहाँ पढ़ा जा सकता है। जंग लड़वाने वाले राजनेता होते हैं और लड़ने वाले सैनिक मगर जीते कोई भी, हारने वाले औरतें और बच्चे होते हैं दोनों तरफ!
इस हादसे से जुड़े कई लोगों की राय सुनी और पढ़ी मगर जिनकी लोगों की राय बिलकुल भी न जान सकी, मेरा दिल उन्ही की तरफ दौड़ता रहा। और जितना उनके बारे में सोचा, दिल को कई आवाज़ें सुनाई देने लगीं :
इस हादसे से जुड़े कई लोगों की राय सुनी और पढ़ी मगर जिनकी लोगों की राय बिलकुल भी न जान सकी, मेरा दिल उन्ही की तरफ दौड़ता रहा। और जितना उनके बारे में सोचा, दिल को कई आवाज़ें सुनाई देने लगीं :
मैं अभी छोटी सी बच्ची हूँ,
श्रीनगर के एक स्कूल में पढ़ती हूँ,
नहीं जानती मेरा कुसूर क्या है,
पर खुली हवा में सांस लेने से डरती हूँ।
मैंने कश्मीर नहीं देखा कभी,
मैं तो यूपी में अपने घर में रहती हूँ,
कहते हैं मेरे पापा नहीं रहे,
मैं तो फिर भी उनका इंतज़ार करती हूँ।
मैं रहती हूँ पाकिस्तान में,
हर रोज़ अमन की दुआ करती हूँ,
मेरे अल्लाह का करम हो बस इतना,
भाई के वापस आने की दुआ करती हूँ।
एक बदनसीब माँ हूँ मैं,
रोती हूँ, तड़पती हूँ,
अपने दिल के टुकड़े का,
हर लम्हा इंतज़ार करती हूँ।
मैं विधवा हूँ उनकी,
हाँ, बहुत गर्व करती हूँ उन पर, मगर
क्या सचमुच शहादत ज़रूरी थी उनकी,
हर पल ये सवाल करती हूँ।
मैं हूँ अभागी धरती माँ,
हर लाल के खून से लाल होती हूँ,
हर बालक मेरी ही गोद में गिरता है,
हर बार बिलख-बिलख के रोती हूँ।
और मैं हूँ इंसानियत,
ज़िंदा रहने के बहाने ढूंढ़ती हूँ,
अल्लाह में ईश्वर तो मिल जाता हैं,
इंसान इंसानों में ढूंढ़ती हूँ।
टिप्पणियाँ
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com