न जाने नींद क्यों नहीं आ रही?

दिल थका तो है,
हर तरफ अँधेरा तो है,
फिर जाने नींद क्यों नहीं आ रही?

पलकों पे एक ख़्वाब बैठा तो है,
सब ठीक सा तो है,
फिर जाने नींद क्यों नहीं आ रही?

बिन बुलाये ख़यालों  को धुतकारा तो है,
सुस्त आँखों ने उसे बुलाया तो है,
फिर जाने नींद क्यों नहीं आ रही?

जिस्म के साथ मन को भी लिटाया तो है,
करवटों को हौले से सहलाया तो है,
फिर जाने नींद क्यों नहीं आ रही?

ज़िन्दगी शायद कुछ ख़फ़ा तो है,
मगर वक़्त ज़रा मुस्कुराया तो है,
फिर जाने नींद क्यों नहीं आ रही?




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