मैं


मैं नदी की तरह मुख़्तलिफ़ मुक़ामोँ से गुज़रती जाती हूँ,
मुझे शीशे में उतारने की कोशिश न करो,

कभी बूँद, कभी बादल, कभी दरिया,
मुझे किसी एक रूप में सँवारने की कोशिश न करो...! 






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