एक आँसूं


एक आँसूं आँख के किनारे पे
बैठ के सोच रहा है,
बह जाऊँ , सूख जाऊँ यहीं,
या लिपटा रहूँ इन आँखों से यूँही,
इस चेहरे की खूबसूरती को,
यूँही चार चाँद लगाता रहूं,
बेचारा ये नहीं जानता के ऐसे,
हज़ारों आये और हज़ारों गए,
और हज़ारों आएँगे,
मेरे पापा की याद में.... 


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अब बस हुआ!!

राज़-ए -दिल

वसुधैव कुटुम्बकम्