मेरी कलम

 

पहले लिखा करती थी,
आजकल नहीं लिखती,
पड़ी रहती है थकी-थकी सी, सेहमी सी, यह कलम,
आजकल नहीं लिखती। 

बहोत बोझ है कन्धों पे इन दिनों,,
इतने मसले, इतने मुद्दे,
समझ ही नहीं पा रही है,
किसे बाद में और किसे पहले लिखे?

सदमे में है कुछ वक़्त से,
बड़ी-बड़ी कलमों को बिकते हुए देख कर,
और वो जो बिकी नहीं,
उनमें से कुछ को टुकड़े-टुकड़े देख कर!,


दुःखी है उन बड़ी कलमों पर,
जो अंदर से खोकली हो गयी हैं,
जिनके ज़मीर बीमार हो गए हैं,
कई को कतई दोगली हो गयी हैं। 

आज कुछ कदम चली है, पर फिर बैठ गयी है,
अपनी लाचारी पे शर्मिंदा है,
जहाँ तेज़तर्रार कलमें बेबस हैं,
लफ़्ज़ों का पेशा आजकल ज़रा गन्दा है!

पहले लिखा करती थी,
आजकल नहीं लिखती,
पड़ी रहती है थकी-थकी सी, सेहमी सी,
यह कलम आजकल नहीं लिखती। 
 

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