दूर चले गए
मेरा नाम जपते-जपते,
वो मुझसे दूर चले गए,
मुझे अपनी पसंद में ढालते -ढालते
मेरे वजूद से दूर चले गए...
मुझे बेचते-बेचते,
वो कहाँ से कहाँ चले गए,
मैं यहाँ इंतज़ार में हूँ उनके,
जो घर से मेरे दूर चले गए...
मेरी मुहोब्बत बांधते-बांधते,
मज़हबी नामों-ओ-इमारतों में,
वो आज़ादी-ए -मुआफ़ी से
बहोत होते दूर चले गए...
मैं आवाज़ देते-देते,
थक गया हूँ उन्हें,
मेरे नाम से जो बुलाते हैं दूसरों को,
वो ख़ुद क्यों मुझसे दूर चले गए?
शायद मुझे ढूँढ़ते-ढूँढ़ते,
मेरी पहचान ही भूल गए,
मैं तो सबका हूँ, सब मेरे,
वो मेरी सच्चाई से दूर चले गए....!
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