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पापा की गुड़िया

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हाँ मैं बच्चे से एक औरत बन गयी हूँ,  मगर अंदर से मैं वही तुम्हारी गुड़िया हूँ,   वही गुड़िया जिसे तुमने चलना सिखाया था  हाँ यह ज़िस्म बदल गया है, मगर मैं आज भी वही रूह हूँ,  जिसे तुमने पहली-पहली बार गोद में उठाया था  फ़ोटो:गूगल  आज भी जब डर जाती हूँ तो तुम्हें ढूंढ़ती हूँ,  ज़िन्दगी कि अँधेरी रातों में तुम्हें ढूंढ़ती हूँ, कुछ अच्छा होता है है तो तुम्हें  सोचती हूँ, तुम्हारी मुस्कुराती आँखें ढूंढ़ती हूँ, सोचती हूँ जब मुझे  ऊप्पर से देखते हो, कितनी बार मत्थे पर बल लाते हो, और कितनी बार शब्बाशी देते हो? या बस आँखों ही आँखों में मुस्कुराते हो…  दिल करता है तुमसे खूब बतियाने का, अपनी हर छोटी-बड़ी कामयाबी सुनाने का, कैसे सच हो रही हैं तुम्हारी दुआएँ हमारे लिए, बड़ी तफ्सील से तुम्हें सुनाने का.…  आज नहीं तो कल तुम्हारे पास आना ही है, खुदा के पहलू में तुम और मेरी कहानी होगी, यह उम्र तो वैसे भी फानी है, पापा, वहाँ अपनी मुलाक़ात रूहानी होगी

हाँ, हम बदल गये…

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फ़ोटो: गूगल  पँछियों  कि तरह उड़ना चाहा, पर मेरे आसमाँ  कि हद तय कर दी गयी, बहुत प्यार था उन धागों में जो न जाने कब ज़ंज़ीरों में बदल गए, दुलार दर्द में बदल गया, प्यार-भरे बोल धमकियों में बदल गए, तहज़ीब दीवारों में ढलने लगी जब रिवाज़ ईंटो में बदल गए, झाँसी कि रानी और इंदिरा ने भी रौंदी थी सरहदें, जब बेटी-बहु ने लांघी देहलीज़ तो सारे जज़्बात हथकड़ियों  में बदल गए, उड़ने कि कोशिश इल्ज़ामों के बीच उलझ गयी, सारे ख्वाब-ओ-हौसले एहसास-ए-गुनाहों में बदल गए, जब हदों ने सारी हदें पार कर दीं, कोई हद नहीं रही फिर, डर और कमज़ोरी के ख्याल हिम्मतों में बदल गए, फिर सोच लिया कि बस अब उड़ना है, आगे बढ़ना है दर-ओ-दीवारें खुली हवाओं में बदल गए, फ़ोटो: गूगल  आसमानों में खुदा को और क़रीब  से जाना, इंसानों के इख्तयार  उस  कि रहमतों में बदल गए