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मौत

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यह रचना बड़ी मुशकिल  से लिख पाई और उससे भी ज्यादा मुश्किल था माकूल फोटो देखना और उन्हें यहाँ लगाना। मगर दुर्भाग्य से उन्हें ढूँढना बिलकुल भी मुश्किल नहीं था। गरीबों की बदकिस्मत जिंदगियों और उन जिंदगियों के बदकिस्मत अंजाम की कहानियाँ  और तस्वीरें इन्टरनेट पर बड़ी आसानी से उपलब्ध हैं, और क्यूँ न हो जब सैंकड़ों गरीब और कमज़ोर हर रोज़ उत्पीड़ित किये जातें हैं… गरीब पर ज़ुल्म दुनिया में हर जगह पाया जाता है और अगर इस दौरान वो मर जाते हैं तो एक आंकड़ें में बदल दिए जाते हैं… और सही भी है एक नंबर के लिए अपराधबोध कम होता है… सब बड़ों की सहूलियत के लिए है…   जो आँकड़ा बन के रह गए, वो भी मेरी तुम्हारी तरह ज़िन्दगानियाँ थीं, जिनकी मट्टी को मट्टी भी न मिल सकी, उनके जिस्मों में भी रवानियाँ थीं वो बच्चे जो कभी बड़े ही नहीं हुए, क्या वो इंसानियत की नहीं ज़िम्मेदारियाँ  थीं? क्या कोई जवाबदारी है या नहीं हैवानियतों की जो कहानियाँ थीं? हाँ, जिए वो ग़रीबी में, मौत के बाद भी कमियाँ थीं, नाम ख़बरों में न आ सका, अखबारों में जगह की तंगियाँ थीं ऐसा अंजाम-ए-ज़िन्
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जब दिन थक कर रात की आगोश में सो जाता है, मेरे ख्यालों के जुगनू यहाँ वहां फुदकने लगते हैं…  जिन्हें पकड़ पाती हूँ, सजा लेती हूँ शायरी की बोतल में इस तरह के बसीरत*-ए-हयात बन के चमकने लगते हैं… बसीरत* = Insight

लौ-ए-उम्मीद

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वो  ख़ौफ़ -ऐ-सज़ा   में   बांधते   रहें   हैं   तुझे , तू   माफ़ी  की   खुली   हवाओं में   मिलता   रहा   है   मुझे a तेरे    नाम   के   कई   ठेकेदार हैं , ऊँची इमारतों में रहते हैं, तू   सर्दी   में   ठिठरती   रूहों   में   मिलता   रहा   है   मुझे किताबों   में   तू   लिखा   गया   है   बड़ ी   खूबी   से , मगर ज़िन्दगी   के  हादसों  में    सा फ़   दिखता   रहा   है   मुझे मेरे अपनों ने भी   इनकार किया मेरा , मगर तू   बड़ी   मुहोब्बत   से   अपनों   में   गिनता   रहा   है   मुझे रिवाज़-ओ-रिवायतों   में उलझी दुनिया समझे   ना समझे , तू ख़ामोश दुआओं में सुनता-ओ-समझता रहा है मुझे अब ग़मों की गुफाओं से डर  कम  लगता है, तू बन के अंधेरों में लौ-ए-उम्मीद मिलता रहा है मुझे यूँ ही नहीं छू लेते दिलों को यह लफ्ज़ , तू मेरी शायरी में मिलता रहा है मुझे
तू हर जगह है तो हर जगह है बस , ना किसी क़ायदे  में कैद है ना किसी की जागीर है 
वो उधार की बात करता है, कैसे उधार दूँ उसे जिसका क़र्ज़ अभी चुकाया नहीं वो क़र्ज़ जिसमें बखुशी डूबी है ज़िन्दगी, वो देता गया मुहोब्बत और कभी जताया नहीं