संदेश

जून, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भाई

तेरी आँखों में आंसूं भी देखें हैं, और उनमें मुस्कराहट भी देखी है, दोनों तोड़ देतें हैं तेरी आखों के बांध और बहा लातें है बड़ी शिद्दत से तेरे जज़्बे को ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ तेरी बातें भी सुनी हैं, तेरी चुप्पी भी सही है, जब तू कहता है तो कहता है जब नहीं कहता तो बहुत कुछ कहता है ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ वो बचपन का दिन-रात का साथ भी जिया है, और सालों से सात समंदर की दूरी भी जी है, तेरे दिल के दर्द को अपनी आँखों में पाया है मेरे दिल के बोझ को तेरे कन्धों पे पाया है 

उसके क़दमों में सर मेरा, मेरा गुरुर है

चाहे ज़रा मैली भी हो, मुझे मेरी सच्चाई ही मंज़ूर है कहाँ तक साथ देगा धुंआ? एक दिन तस्वीर साफ़ होती ज़रूर है यूँ तो खुद्दार हूँ, सर उठा के चलने की आदत है, उसके क़दमों में सर मेरा, मेरा गुरुर है मज़हब तो समझता है, गर हमदर्दी भी समझ जाए, तो पिघल जाए वो रहनुमा जो अभी मगरूर है तहज़ीब-ओ-अदब जानता है सारे, माना इंसान को गले लगाने का क्या तुझे शहूर है? बैठ कुछ देर गरीब की कुटिया में और ढूंढ उसकी आँखों में, पा लेगा उस खुदा को जो तेरे महल से ज़रा दूर है
मुसलसल दर्द का ज़ाएका मीठा हो जाता है, ख़त्म हो जाए तो कुछ कमी सी लगती है सोचूँ खुशियाँ सारे जहां की मगर, ख्याल-ए-उल्फत नम हो जाए तो कुछ कमी सी लगती है