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क्या कहिये

जो रंजिश भी मोहब्बत से करे, उस दिल की क्या कहिये जो सज़ा दिलवाए माफ़ी में भिगो के, उस वकील की क्या कहिये जो जफा किये जाए दिल में दर्द लिए, उस ज़लील की क्या कहिये जो सहमी रहे दिल के तहखाने में, उस दलील की क्या कहिये जो मिल भी जाए और पाने की जुस्तुजू भी रहे, उस मंजिल की क्या कहिये जहाँ मेहमान भी आप ही हों और मेज़बान भी, उस महफ़िल की क्या कहिये  जो डूब कर ही नसीब हो, उस साहिल की क्या कहिये
कुछ अलफ़ाज़ बिखरा दिए थे यूँ ही,  क़द्रदानी तो बस करम है आपका... :-)

नींद

रोज़ रात आती है मुझे सुलाने, पर हार जाती है ख्यालों के आगे, फिर नींद आती है लंगडाती हुई, जब दिल-ओ-दिमाग थक जाते हैं सवालों के आगे….  नींद छिप जाती है जब शायरी मुझ से मिलने आती है,  कैसे समझाऊं इसे इतनी बेलज्ज़त भी ख्यालों की महफ़िल नहीं होती 

नदी हूँ

चित्र
थम जाऊं, पहाड़ नहीं हूँ, नदी हूँ, बहती चली जाती हूँ, मायूसी का जोर नहीं चलता ज़रा देर, उम्मीद का दामन थामे चली जाती हूँ…. Ganga River (photo from google) पत्थर की ताकत नहीं मुझमे, हाँ, प्यास बुझानी आती है, टूटा नहीं करती, मगर सिम्त-ए-धारा बदलनी आती है कभी धीमे से कभी कल-कल चली जाती हूँ… मेरे हिस्से में भी कंकड़ हैं जल्दबाज़ी में अपने साथ बहा लाती हूँ, जब थम-थम के बहती हूँ, कुछ और निर्मल हो जाती हूँ, केफ़ियत-ओ-कमियाँ लिए चली जाती हूँ… प्यार की बारिश मुझे छू ताज़ा कर जाती है, पर यह बारिश ही कभी कभी सैलाब भी दे जाती है ऐसे में दुखती-दुखाती चली जाती हूँ… ना बनूँ बरकत तो बेकार है मेरा बहना , ना रुकूँ किसी सरहद पे, उस दरिया तक है मुझे बहना, पी से मिलने की चाह में बही चली जाती हूँ.... सबकी रहते हुए, सिर्फ़ उसकी होना चाहती हूँ, कुछ और मिले न मिले मुझको, इस 'मैं' को खोना चाहती हूँ, 'मैं' नहीं पर अक्स दिखे बस तुम्हारा … यह अरमान लिए चली जाती हूँ…