रचतें हैं मज़हब मेरे नाम पे किस्म-किस्म के,
पूछें तो मुझसे मेरा कोई मज़हब नहीं

टिप्पणियाँ

कविता रावत ने कहा…
इंसान का मज़हब तो एक ही है .इंसानियत ...
बहुत खूब!

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अब बस हुआ!!

राज़-ए -दिल

वसुधैव कुटुम्बकम्