मौत

यह रचना बड़ी मुशकिल  से लिख पाई और उससे भी ज्यादा मुश्किल था माकूल फोटो देखना और उन्हें यहाँ लगाना। मगर दुर्भाग्य से उन्हें ढूँढना बिलकुल भी मुश्किल नहीं था। गरीबों की बदकिस्मत जिंदगियों और उन जिंदगियों के बदकिस्मत अंजाम की कहानियाँ  और तस्वीरें इन्टरनेट पर बड़ी आसानी से उपलब्ध हैं, और क्यूँ न हो जब सैंकड़ों गरीब और कमज़ोर हर रोज़ उत्पीड़ित किये जातें हैं… गरीब पर ज़ुल्म दुनिया में हर जगह पाया जाता है और अगर इस दौरान वो मर जाते हैं तो एक आंकड़ें में बदल दिए जाते हैं… और सही भी है एक नंबर के लिए अपराधबोध कम होता है… सब बड़ों की सहूलियत के लिए है…  


जो आँकड़ा बन के रह गए,
वो भी मेरी तुम्हारी तरह ज़िन्दगानियाँ थीं,
जिनकी मट्टी को मट्टी भी न मिल सकी,
उनके जिस्मों में भी रवानियाँ थीं


वो बच्चे जो कभी बड़े ही नहीं हुए,
क्या वो इंसानियत की नहीं ज़िम्मेदारियाँ  थीं?
क्या कोई जवाबदारी है या नहीं
हैवानियतों की जो कहानियाँ थीं?


हाँ, जिए वो ग़रीबी में,
मौत के बाद भी कमियाँ थीं,
नाम ख़बरों में न आ सका,
अखबारों में जगह की तंगियाँ थीं


ऐसा अंजाम-ए-ज़िन्दगी हुआ,
ऐसी क्या उनकी कारगुजारियाँ थीं? 
तू भी खामोश सा रहा,
क्या तेरी भी मजबूरियाँ थीं?


                                                   काश इंसानियत को इंसानियत याद आये,
क्या इसकी निशानियाँ थीं,
कबीर-ओ-रहीम की कोई  इसे याद दिलाए,
काश कोई फिर जिए वो जो कहानियाँ थीं…

Photos courtesy Google

टिप्पणियाँ

Anupama Tripathi ने कहा…
हृदय विदारक ....मर्मस्पर्शी ...
सोचने पर मजबूर कर रही है रचना ...!!
जीवन राह पड़े पत्थरों से भी सस्ता हो जाये, वहाँ आँखें नम हो जाने के अतिरिक्त उपाय ही क्या है।
काश इंसानियत को इंसानियत याद आये,
क्या इसकी निशानियाँ थीं,
कबीर-ओ-रहीम की कोई इसे याद दिलाए,
काश कोई फिर जिए वो जो कहानियाँ थीं… kaash
vandana gupta ने कहा…
उफ़ ………बेहद ह्रदयविदारक सच
काश इंसानियत को इंसानियत याद आये,
क्या इसकी निशानियाँ थीं,
कबीर-ओ-रहीम की कोई इसे याद दिलाए,
काश कोई फिर जिए वो जो कहानियाँ थीं…

काश .... ऐसा हो सके .
मर्मस्पर्शी !
Bharat Bhushan ने कहा…
जीवन के कई फलसफे हैं. एक फलसफा ऐसा भी है जो इंसानी जीवन के मूल्यों को तरजीह नहीं देता. उसे सारी दुनिया चाहिए और इसके अलावा जो उसे चाहिए वही चाहिए जिससे उसका मतलब निकलता हो.
आपकी कविता दिल से निकली है और दिलों तक पहुँची है.
bhawnavardan@gmail.com ने कहा…
jo bewaqt chale jate hain un khamoshiyon ko kisne suna hai.......
Rakesh Kumar ने कहा…
आपके हृदय का दर्द रिस रिसकर इस प्रस्तुति में प्रकट हो रहा है.बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति.
रविकर ने कहा…
अहम् आंकड़े हैं भरत, दंगा सूखा बाढ़ |
तड़ित गिरे बादल फटे, दे धरती को फाड़ |
दे धरती को फाड़, रोड पर झन्झट भारी |
रेल बम्ब विस्फोट, आंकड़ों की तैयारी |
कह रविकर कविराय, विवाहित हड़-बड़े छड़े |
लिविन रिलेशन ढेर, देखिये अहम् आंकड़े ||
रविकर ने कहा…
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