क्या कहिये

जो रंजिश भी मोहब्बत से करे,
उस दिल की क्या कहिये

जो सज़ा दिलवाए माफ़ी में भिगो के,
उस वकील की क्या कहिये

जो जफा किये जाए दिल में दर्द लिए,
उस ज़लील की क्या कहिये

जो सहमी रहे दिल के तहखाने में,
उस दलील की क्या कहिये

जो मिल भी जाए और पाने की जुस्तुजू भी रहे,
उस मंजिल की क्या कहिये

जहाँ मेहमान भी आप ही हों और मेज़बान भी,
उस महफ़िल की क्या कहिये 

जो डूब कर ही नसीब हो,
उस साहिल की क्या कहिये


टिप्पणियाँ

बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति
बहुत खूब ...सुंदर अभिव्यक्ति
Yashwant R. B. Mathur ने कहा…
बेहतरीन।

सादर
सदा ने कहा…
जो रंजिश भी मोहब्बत से करे,
उस दिल की क्या कहिये
वाह ...बहुत खूब।
M VERMA ने कहा…
विसंगतियाँ ही विसंगतियाँ
Rajesh Kumar 'Nachiketa' ने कहा…
आपकी सहमती से एक कड़ी मैं भी जोड़ दूं...

जहाँ खुद के शेर पे देनी पड़े खुद ही दाद
उस महफ़िल की क्या कहिये.

शीघ्र अपने देश लौटने वाला हूँ....
व्यस्तता के कारण इतने दिनों ब्लॉग से दूर रहा.
नयी रचना समर्पित करता हूँ. उम्मीद है पुनः स्नेह से पूरित करेंगे.
राजेश नचिकेता.
http://swarnakshar.blogspot.ca/
Bharat Bhushan ने कहा…
यह बहुत असरदार रहा-

जो सहमी रहे दिल के तहखाने में,
उस दलील की क्या कहिये

बहुत खूब कहा है.
Always Unlucky ने कहा…
awesome! loving your blog, so keep it up and i'll be back!
From Creativity has no limit
Always Unlucky ने कहा…
This is excellent. I come here all the time and it’s post like this that are the reason. Keep up the great writing.
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