नींद


रोज़ रात आती है मुझे सुलाने,
पर हार जाती है ख्यालों के आगे,
फिर नींद आती है लंगडाती हुई,
जब दिल-ओ-दिमाग थक जाते हैं सवालों के आगे…. 


नींद छिप जाती है जब शायरी मुझ से मिलने आती है, 
कैसे समझाऊं इसे इतनी बेलज्ज़त भी ख्यालों की महफ़िल नहीं होती 

टिप्पणियाँ

M VERMA ने कहा…
नींद और ख्याल दोनों एक साथ कैसे आ सकते हैं
बहुत सुंदर रचना। ऐसी रचनाएं कभी कभी पढने को मिलती हैं
S.N SHUKLA ने कहा…
सुन्दर,सार्थक सृजन, आभार.
कृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" की नयी पोस्ट पर भी पधारें, आभारी होऊंगा.
ख़यालों के साथ नींद कैसे आए ?
Neend aur khyal dushman Jo hain ki dooje ke ... Bahut khoob ....
Yashwant R. B. Mathur ने कहा…
बहुत ही बढ़िया

सादर
Yashwant R. B. Mathur ने कहा…
कल 07/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
नींद ही ऊर्जा लेकर आती है, हम सबके जीवन में..
Sunil Kumar ने कहा…
बहुत ही बढ़िया.....
Monika Jain ने कहा…
hmm neend aur khayalo ki ladai to hamesha jari rahegi..
Bharat Bhushan ने कहा…
ख़्यालों की लज़्ज़त और ख़्वाबों के बिना तो नींद भी उकता जाएगी. ख़ूब कहा है.
Saras ने कहा…
रोज़ रात आती है मुझे सुलाने,
पर हार जाती है ख्यालों के आगे,
..वाही तो एक समय होता है ...जो सिर्फ हमारा और हमारे ख्यालों का होता है ....sundar !
खयाल सच सोने भी नहीं देते ... बहुत खूब
S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…
नींद के रास्तों में खयालात के स्पीड ब्रेकर....
Udan Tashtari ने कहा…
बेहतरीन रचना....

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