नदी हूँ

थम जाऊं, पहाड़ नहीं हूँ,
नदी हूँ, बहती चली जाती हूँ,
मायूसी का जोर नहीं चलता ज़रा देर,
उम्मीद का दामन थामे चली जाती हूँ….

Ganga River (photo from google)

पत्थर की ताकत नहीं मुझमे,
हाँ, प्यास बुझानी आती है,
टूटा नहीं करती, मगर
सिम्त-ए-धारा बदलनी आती है
कभी धीमे से कभी कल-कल चली जाती हूँ…

मेरे हिस्से में भी कंकड़ हैं
जल्दबाज़ी में अपने साथ बहा लाती हूँ,
जब थम-थम के बहती हूँ,
कुछ और निर्मल हो जाती हूँ,
केफ़ियत-ओ-कमियाँ लिए चली जाती हूँ…

प्यार की बारिश मुझे छू
ताज़ा कर जाती है,
पर यह बारिश ही कभी कभी
सैलाब भी दे जाती है
ऐसे में दुखती-दुखाती चली जाती हूँ…

ना बनूँ बरकत तो
बेकार है मेरा बहना ,
ना रुकूँ किसी सरहद पे,
उस दरिया तक है मुझे बहना,
पी से मिलने की चाह में बही चली जाती हूँ....

सबकी रहते हुए,
सिर्फ़ उसकी होना चाहती हूँ,
कुछ और मिले न मिले मुझको,
इस 'मैं' को खोना चाहती हूँ,
'मैं' नहीं पर अक्स दिखे बस तुम्हारा … यह अरमान लिए चली जाती हूँ…


टिप्पणियाँ

Kailash Sharma ने कहा…
सबकी रहते हुए,
सिर्फ़ उसकी होना चाहती हूँ,
कुछ और मिले न मिले मुझको,
इस 'मैं' को खोना चाहती हूँ,
'मैं' नहीं पर अक्स दिखे बस तुम्हारा … यह अरमान लिए चली जाती हूँ…

....गहन भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति...
'मैं' नहीं पर अक्स दिखे बस तुम्हारा …
यह अरमान लिए चली जाती हूँ…

सुंदर कामना लिये भावपूर्ण प्रस्तुति.
प्यास बुझानी आती है,
टूटा नहीं करती, मगर
सिम्त-ए-धारा बदलनी आती है
कभी धीमे से कभी कल-कल चली जाती हूँ…

बहुत सुंदर प्रस्तुति
बहुत उम्दा ..... हर पंक्ति मधुर संदेश से ओतप्रोत है.
Deepak Saini ने कहा…
सबकी रहते हुए,
सिर्फ़ उसकी होना चाहती हूँ,
कुछ और मिले न मिले मुझको,
इस 'मैं' को खोना चाहती हूँ,
'मैं' नहीं पर अक्स दिखे बस तुम्हारा … यह अरमान लिए चली जाती हूँ…

सुंदर प्रस्तुति
Pallavi saxena ने कहा…
स्त्री जीवन ज़िंदगी और नदी सब कुछ जैसे एक ही सिक्के के कई पहलू.... बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति
रुकना कहाँ सीख पाया मैं, नदियों सा बहना आया बस।
S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…
इस 'मैं' को खोना चाहती हूँ....

सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
M VERMA ने कहा…
सबकी रहते हुए,
सिर्फ़ उसकी होना चाहती हूँ,
उम्दा अंदाज़
Bharat Bhushan ने कहा…
जीवन नदिया के प्रवाह और उसके पथ की छवियों को साथ लेते हुए कविता जीवन दर्शन तक आ जाती है-
'पी से मिलने की चाह में बही चली जाती हूँ....-इस 'मैं' को खोना चाहती हूँ,'
यही नदिया का सौंदर्य है. बहुत सुंदर.
Udan Tashtari ने कहा…
सुन्दर भावपूर्ण....उम्दा रचना....

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