आओ, सभी हाथ बढाएँ!
पिछले दस सालों में मुझे दुनिया के कई देशों में काम करने का मौका मिला. तरह तरह की चीज़े देखीं, अलग-अलग संस्कृति देखी. मगर कोई भी देश हो, कोई भी संस्कृति, गरीबी की मार जिस पे पड़ती है, उसके चेहरे पे वही मजबूरी, वही उदासी देखी. मगर जब भी उनके साथ काम किया, थोड़े में ज़िन्दगी जीने की नसीहत पाई, दुआएं पायीं.
हम सब जानते हैं की दुनिया की अधिकतर समस्याओं की जड़ गरीबी है मगर फिर भी गरीबी को जड़ से ख़त्म करने में हम असमर्थ रहे हैं… मान लेते हैं की हम सारी दुनिया की गरीबी ख़त्म नहीं कर सकते मगर हम अपने आसपास की गरीबी को ज़रूर आड़े हाथों ले सकते हैं… चलिए, फिर देर किस बात की है? :-)
गरीबी को कैसे हराएँ?
आओ, सभी हाथ बढाएँ!
भीख को मदद में बदल सकें तो बात बने
आओ, फैली हथेली को सहारा देकर उठाएं
अनपढ़ हैं, अयोग्य नहीं,
आओ, मिलके हर एक को पढ़ाएं
क, ख, ग, में मन नहीं लगता, कोई बात नहीं,
पढ़ाई नहीं तो कोई हुनर सिखलाएँ
देखो, वो थक गएँ अकेले बोझ उठा उठाके,
आओ, गरीबी के खिलाफ मिलके जुट जाएं
कब तक आँख चुराएँगे उन भूखी आँखों से?
आओ, अब रोटी बाँट के खाएँ
गरीबी पे ग़ालिब होने का एक ही तरीका है,
आओ, गरीब को गले से लगाएँ
पुराने-धुराने कपड़ों के पीछे करोड़ों की दुआएं छिपी हैं,
आओ, मोहब्बत-ओ-बरकतों से कामयाब हो जाएँ
जेब में कुछ हो न हो, दिल में खुदा रखते हैं,
आओ, इनके ज़रिए उससे भी मिल आएँ
हम सब जानते हैं की दुनिया की अधिकतर समस्याओं की जड़ गरीबी है मगर फिर भी गरीबी को जड़ से ख़त्म करने में हम असमर्थ रहे हैं… मान लेते हैं की हम सारी दुनिया की गरीबी ख़त्म नहीं कर सकते मगर हम अपने आसपास की गरीबी को ज़रूर आड़े हाथों ले सकते हैं… चलिए, फिर देर किस बात की है? :-)
गरीबी को कैसे हराएँ?
आओ, सभी हाथ बढाएँ!
भीख को मदद में बदल सकें तो बात बने
आओ, फैली हथेली को सहारा देकर उठाएं
अनपढ़ हैं, अयोग्य नहीं,
आओ, मिलके हर एक को पढ़ाएं
क, ख, ग, में मन नहीं लगता, कोई बात नहीं,
पढ़ाई नहीं तो कोई हुनर सिखलाएँ
देखो, वो थक गएँ अकेले बोझ उठा उठाके,
आओ, गरीबी के खिलाफ मिलके जुट जाएं
कब तक आँख चुराएँगे उन भूखी आँखों से?
आओ, अब रोटी बाँट के खाएँ
गरीबी पे ग़ालिब होने का एक ही तरीका है,
आओ, गरीब को गले से लगाएँ
पुराने-धुराने कपड़ों के पीछे करोड़ों की दुआएं छिपी हैं,
आओ, मोहब्बत-ओ-बरकतों से कामयाब हो जाएँ
जेब में कुछ हो न हो, दिल में खुदा रखते हैं,
आओ, इनके ज़रिए उससे भी मिल आएँ
टिप्पणियाँ
धन्यवाद!
पढ़ाई नहीं तो कोई हुनर सिखलाएँ
कब तक आँख चुराएँगे उन भूखी आँखों से?
आओ, अब रोटी बाँट के खाएँ
अद्भुत रचना...बधाई
नीरज
बहुत ही सार्थक रचना....
सादर....
thanks