दुआ

इतना ऊँचा उठा मुझे
के तेरे क़दमों में जगह मिल जाए 

टिप्पणियाँ

Bharat Bhushan ने कहा…
फर्क ही नहीं होता हममें गर
तो लज्ज़त कहाँ से आती?
सरगम कैसे सजती,
ये रंगत कहाँ से आती?
चलो, इन्ही फ़र्कों में कहीं,
एक से एहसास ढूंढे

इसी एक अहसास से इंसानियत की शुरूआत होती है. आपकी रचनाओं में मानवीय गुणों का सागर हिलोरें ले रहा है.
अनुपम प्रार्थना।
Sunil Kumar ने कहा…
आपकी दुआ कुबूल हो
बेनामी ने कहा…
बेहतरीन कहा है ... ।
अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
Udan Tashtari ने कहा…
वाह!! क्या दुआ की है...
Rakesh Kumar ने कहा…
'तेरे क़दमों में जगह मिल जाये'
इसका तात्पर्य भगवान की शरण से है.

'ऊँचा' उठाने से मतलब कि हम स्वार्थ के गर्त से निकल सदा सद्विचार,सद्भाव रखते हुए सद्कर्म ही करें.

आपने कुछ ही शब्दों में अध्यात्म का निचोड़ प्रस्तुत कर दिया है.

मैं क्षमाप्रार्थी हूँ कि आपकी इस पोस्ट पर देर से आ पाया हूँ.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
DR. ANWER JAMAL ने कहा…
आमीन या रब्बल आलमीन !

अर्थात
हे सर्वलोकनाथ ! ऐसा ही हो !!

आज आपको अनम बुला रही है 'प्यारी माँ' के पास !!!

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