हिसाब कोशिशों का रखना फ़िज़ूल है

हर वो बादल जो छिपाता है
उम्मीद-ए-आफ़ताब को,
ज़मीन पे बहता देखोगे
हर एक बूँद-ऐ-आब को,

मायूसी समेट लेना चाहती हैं
ज़िन्दगी की किताब को,
बचा के रखना है इससे
उस सुनहरे ख्व़ाब को

इन्हीं चट्टानों में छिपा वो पत्थर भी है,
जुस्तजू ढून्ढ ही लेगी उस नायाब को,
तबाही के बाद भी तो फूटती हैं कोपलें,
कोई बहार ढूंढ ही लेगी दिल-ऐ-बर्बाद को

कब तक छुपेगा सलाम दुप्पटे में, एक दिन
हवा कर देगी ज़ाहिर पर्दानशीं आदाब को
हिसाब कोशिशों का रखना फ़िज़ूल है,
मंजिल पाकर फुर्सत ही कहाँ कामयाब को

टिप्पणियाँ

इन्हीं चट्टानों में छिपा वो पत्थर भी है,
जुस्तजू ढून्ढ ही लेगी उस नायाब को,
तबाही के बाद भी तो फूटती हैं कोपलें,
कोई बहार ढून्ढ ही लेगी दिल-ऐ-बर्बाद को
kafi bhaw bharee panktiyaan
केवल राम ने कहा…
मायूसी समेट लेना चाहती हैं
ज़िन्दगी की किताब को,
बचा के रखना है इससे
उस सुनहरे ख्व़ाब को

यह दौर तो हर किसी की जिन्दगी में आता है ...पर वही सफल होता है जिन्दगी में, जो इसको मायूसियों से बचा कर रखता है ...आपकी कविता बहुत प्रेरक है
Deepak Saini ने कहा…
पहुँच के मंजिल पे फुर्सत ही कहाँ कामयाब को

आपकी कविता बहुत प्रेरक है
मंजिलों के आगे भी तो मंजिलों के काफिलें हैं।
Rakesh Kumar ने कहा…
Aapki niskapat nirmal mansa jo aapki vani ke madhyam se bade prabhavpoorn dhang se prastoot ki gayi hai,veh hamaare man ko bhi aandolit kar rahi hai aur prerna de rahi hai "veer tum badhe chalo,
dheer tum badhe chalo.."
शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।
कविता बहुत प्रेरक है
vandana gupta ने कहा…
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (17-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/
Mithilesh dubey ने कहा…
लाजवाब कविता के लिए बधाई ।
रंजना ने कहा…
वाह...

सुन्दर रचना...
Udan Tashtari ने कहा…
कब तक छुपेगा सलाम दुप्पटे में, एक दिन
चलती हवा कर देगी ज़ाहिर पर्दानशीं आदाब को


-न कभी छुपा है...न कभी छुपेगा...


सुन्दर अभिव्यक्ति!!

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