पहली मोहब्बत तो पहली ही होती है

कोई कोई कविता बस आंसूओं के साथ झर-झर बह जाती है.... और शायद दर्द का कुछ हिस्सा भी अपने साथ ले जाती है... उंगली पकड़ के बचपन की मस्त दुनिया में ले जाती है... जैसे मेरी जड़ों में से कुछ मट्टी मेरे हाथ में दे जाती है....




कभी-कभी पुरानी तस्वीरों के ज़रिये
माज़ी की सैर पे निकल जाती हूँ,
उन पुरानी दीवारों के बीच उस दुनिया में,
अपनी उस साइकिल पे घुमने निकल जाती हूँ

पर अब सिर्फ साइकिल से काम नहीं चलता,
नाव भी ढूँढनी पड़ती है,
आंसूओं की एक लहर भी चलती हैं वहां पर,
हिम्मत की पतवार चलानी पड़ती है

याद है मुझे, जहां दीवारों से बाहर
झाँकने की कोशिश हुई,
वहीँ मेरी पहली मोहब्बत के
माथे पे सलवटें हुईं

पर ज्यूँ ही शरारतें अपने
पंख समेटतीं,
माथे से ज़रा नीचे आँखें
मुस्कुराने लगतीं

याद हैं जो झुमके मेरे लिये लाये थे तुम,
वो कहानियां जो खुद ही बना लेते थे तुम,
खट्टे-मीठे चुटकुलों से सबको हंसा देते थे तुम
सच है, ज़िन्दगी को अपनी शर्तों पे जीते थे तुम

फिर यकायक, 'आज' नज़र से
'बीते हुए कल' को चुरा लेता है,
पापा की हंसती हुई ऑंखें नहीं दिखती,
पर बेटे का चेहरा मुस्कुरा देता है

मगर पहली मोहब्बत तो
पहली ही होती है,
घिरी हूँ रहमत-ओ-खुशियों से
पर तुम्हारी कमी पूरी नहीं होती है

आज, तुम भी नहीं हो,
दीवारें भी नहीं हैं,
मगर बाहर झाँकूँ, ऐसी
क्वाहिश-ओ-नज़ारे भी नहीं हैं

अब तुम्हारी तस्वीरें ही रह गयीं हैं मेरे पास
कुछ कागज़ की, कुछ यादों की.
हाँ, तुम्हारा हुनर भी रह गया है,
मत्थे की सलवटों को बना लेती हूँ आँखों की हंसी

टिप्पणियाँ

Bharat Bhushan ने कहा…
"पर अब सिर्फ साइकिल से काम नहीं चलता,
नाव भी ढूँढनी पड़ती है,
आंसूओं की एक लहर भी चलती हैं वहां पर,
हिम्मत की पतवार चलानी पड़ती है"

वाह..वाह..! अनोखा भाव है. अंतिम पंक्तियाँ "मत्थे की सलवटों को बना लेती हूँ आँखों की हंसी" अंतःकरण में ले जाता है.
Sunil Kumar ने कहा…
मत्थे की सलवटों को बना लेती हूँ आँखों की हंसी
दिल क़ी गहराई से लिखी गयी एक रचना , बधाई
Patali-The-Village ने कहा…
दिल क़ी गहराई से लिखी गयी एक रचना| बधाई |
पर अब सिर्फ साइकिल से काम नहीं चलता,
नाव भी ढूँढनी पड़ती है,
आंसूओं की एक लहर भी चलती हैं वहां पर,
हिम्मत की पतवार चलानी पड़ती है
...tabhi jee pati hun
kuch kah pati hun
बेनामी ने कहा…
याद है मुझे, जहां दीवारों से बाहर
झाँकने की कोशिश हुई,
वहीँ मेरी पहली मोहब्बत के
माथे पे सलवटें हुईं

wahh....bohot khoob...!

मत्थे की सलवटों को बना लेती हूँ आँखों की हंसी

ye hunar bhi zaruri hai....kya gehraai se likha hai aapne....bohot hi touchy nazm hai, too good
अब तुम्हारी तस्वीरें ही रह गई हैं
कुछ काग़ज की कुछ यादों की।
सुन्दर अभिव्यक्ति।
Shekhar Suman ने कहा…
lillah !!! ye kya likh diya aapne..
too good...
yahi to mahabbat hai..:)aur pehla pyaar to ek yaad hi reh jaata hai sabhi ke liye.....
bahut hi sundar...
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
अच्छा लगा इस कविता के माध्यम से आपको व आपके दिल को जानकर
vandana gupta ने कहा…
मत्थे की सलवटों को बना लेती हूँ आँखों की हंसी

पहली मोहब्बत की कसक का सजीव चित्रण कर दिया।
dil se nikli kavita seedhe dil tak pahunch
rahi hai..
sarthak...
कडुवासच ने कहा…
... behad maarmik va bhaavpoorn rachanaa !!!
Kanta Dayal ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना ( नाराज़गी जितनी दिल में रखी जाए ) कल मंगलवार 14 -12 -2010
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..


http://charchamanch.uchcharan.com/
Kailash Sharma ने कहा…
आज, तुम भी नहीं हो,
दीवारें भी नहीं हैं,
मगर बाहर झाँकूँ, ऐसी
क्वाहिश-ओ-नज़ारे भी नहीं हैं

बहुत ही मार्मिक भावपूर्ण प्रस्तुति...लाजवाब
अन्तिम पंक्ति न जाने क्या क्या कह गयी। बहुत ही सुन्दर।
अब तुम्हारी तस्वीरें ही रह गयीं हैं मेरे पास
कुछ कागज़ की, कुछ यादों की.
हाँ, तुम्हारा हुनर भी रह गया है,
मत्थे की सलवटों को बना लेती हूँ आँखों की हंसी

बहुत सुंदर, दिल की गहराई से लिखी गई भावपूर्ण रचना...

http://veenakesur.blogspot.com/
Govind Salota ने कहा…
याद हैं जो झुमके मेरे लिये लाये थे तुम,
वो कहानियां जो खुद ही बना लेते थे तुम,
खट्टे-मीठे चुटकुलों से सबको हंसा देते थे तुम
सच है, ज़िन्दगी को अपनी शर्तों पे जीते थे तुम

मगर पहली मोहब्बत तो
पहली ही होती है,
घिरी हूँ रहमत-ओ-खुशियों से
पर तुम्हारी कमी पूरी नहीं होती है

आज, तुम भी नहीं हो,
दीवारें भी नहीं हैं,
मगर बाहर झाँकूँ, ऐसी
क्वाहिश-ओ-नज़ारे भी नहीं हैं

Aapki ye lines na jaane kaisa jaadu kar gayi hai ki kisi ki yaad ne mujhe bahut dinon baad jhanjhod kar rakh diya.. man fir se bhavuk ho gaya hai, jise yaad na karne ko socha tha fir yaad aa gaya hai.

bahut achchha likha hai sach mein aapne...
iske liye main aapka aabhaari hoon
hot girl ने कहा…
nice poem,

lovely blog.
amar jeet ने कहा…
बहुत कुछ कहती आपकी रचना बेहतरीन पोस्ट
Prerna ने कहा…
ओह! बेहद खूबसूरत कविता..
अब तुम्हारी तस्वीरें ही रह गयीं हैं मेरे पास
कुछ कागज़ की, कुछ यादों की.
हाँ, तुम्हारा हुनर भी रह गया है,
मत्थे की सलवटों को बना लेती हूँ आँखों की हंसी

माजी में गुज़र जाओ तो कुछ न कुछ मिल ही जाता है ... बहुत लाजवाब ..
ManPreet Kaur ने कहा…
bahut badiya... apka blog bhi kafi sundar hai..

mere blog par bhi kabhi aaiye waqt nikal kar..
Lyrics Mantra
Vikash Goyal ने कहा…
अब तुम्हारी तस्वीरें ही रह गयीं हैं मेरे पास
कुछ कागज़ की, कुछ यादों की.
हाँ, तुम्हारा हुनर भी रह गया है,
मत्थे की सलवटों को बना लेती हूँ आँखों की हंसी

इस तरह आपने शब्दों को लिखा है की मन भावुक हो जाता है. बस इतना ही कह सकूँगा "बहूत खूब" - सलाम है.

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