नाराज़गी जितनी दिल में रखी जाए, उतनी ही भारी हो जाती है





हम सभी कभी न कभी किसी न किसी पे नाराज़ हुए होंगे. पर कभी कभी ये गुस्सा हमारी ज़िन्दगी में, हमारे दिलों में, हमारे रिश्तों में या हमारे नज़रिए में रह जाता है. कभी रिश्ते खराब करता है कभी सेहत. यहाँ यही गुज़ारिश है की गुस्से से निजात पायें, जिन हालातों या लोगों की वजह से नाराजगी की शुरुआत हुई, उन्हें बदलने की कोशिश करें या हम अपना नज़रिया बदलने की कोशिश करें और कुछ काम ना आए तो अपना रास्ता बदल लें... माफ़ी को गले लगाना, गुस्से को गले लगाने से कहीं बेहतर है...

नाराज़गी जितनी देर दिल में रखी जाए,
उतनी ही भारी हो जाती है,
दिल का बोझ बन जाती है,
सूखी-सूखी ज़िन्दगी बेचारी हो जाती है 

न जाने क्यूँ फिर भी 
इस बोझ को दिल से लगाए रहते हैं,
नाराज़गी की ता'बेदारी में
सर को झुकाए रहते हैं 

रूठना-मनाना जायज़ है
थोड़ा सा गुस्सा, थोड़ी सी माफ़ी,
ज़िन्दगी के ज़ाएके और मिजाज़ 
बदलने को काफी 

मगर लम्बी नाराज़गी,
ढेर सारा गुस्सा,
ना सेहत, ना रिश्ते,
ना दिल के चैन के लिये अच्छा 

http://lifehacker.com/5614548/venting-frustration-will-only-make-your-anger-worse
आँखें लाल, तमतमाता चेहरा,
उखड़े अंदाज़
कभी खामोश रंजिश 
कभी खुल्लमखुल्ला एतराज़ 

गुस्सा आना गलत नहीं,
रह जाना गलत है,
इसे दिल में दबा लेना भी गलत है,
इसमें बह जाना भी गलत है 


रुखसत हो जाए जो
एहसास-ऐ-नाराज़गी
ज़िन्दगी में आ जाए 
बहार-ओ-ताज़गी

गुस्सा बदले उस जज़्बे में,
जो बदले यूँ सूरत-ऐ-हाल,
कलम, मुस्कराहट, माफ़ी,   
गुफत-ओ-शानीद का हो इस्तेमाल





ता'बेदारी = Obedience
गुफत-ओ-शानीद  = Negotiation 

टिप्पणियाँ

The Serious Comedy Show. ने कहा…
bahut khoobsoorat baat,bahut khoobsoorat andaaz mei.
M VERMA ने कहा…
रूठना-मनाना जायज़ है
थोड़ा सा गुस्सा, थोड़ी सी माफ़ी,
ज़िन्दगी के ज़ाएके और मिजाज़
बदलने को काफी
यकीनन ....
बहुत खूबसूरत बात कही आपने
बिलकुल सही ....इस रूठने मनाने को सटीक शब्द दिए हैं ..
S.M.Masoom ने कहा…
रूठना-मनाना जायज़ है
थोड़ा सा गुस्सा, थोड़ी सी माफ़ी,
ज़िन्दगी के ज़ाएके और मिजाज़
बदलने को काफी

मगर लम्बी नाराज़गी,
ढेर सारा गुस्सा,
ना सेहत, ना रिश्ते,
.
बहुत सुंदर. दिल को छु गयी यह पंक्तियाँ
vandana gupta ने कहा…
वाह जी वाह बहुत ही खूबसूरत चित्रण किया है…………बधाई।
नाराजगी जितनी जल्दी घुल जाये उतना अच्छा।
बहुत खूबसूरत बात कही आपने
कडुवासच ने कहा…
गुस्सा आना गलत नहीं,
रह जाना गलत है,
इसे दिल में दबा लेना भी गलत है,
इसमें बह जाना भी गलत है
... bahut sundar ... behatreen !!!
rashmi ravija ने कहा…
गुस्सा आना गलत नहीं,
रह जाना गलत है,
इसे दिल में दबा लेना भी गलत है,
इसमें बह जाना भी गलत है

सौ बात की एक बात, यही है....बड़े ही काव्यात्मक अभिव्यक्ति से बातें समझाई हैं..
JAGDISH BALI ने कहा…
बहुत उम्दा ! पर नीचे उर्दू के अलफ़ा्ज़ के मायने दे कर काम हल्का भी कर दिया !
thoda sa gussa, thodi narazgi thoda manuhaar ...tab jakar hai jivan saakar...par rah jaye sirf gussa to sab khatm
बेनामी ने कहा…
wah...bohot khoob...bohot hi sahi likha hai aapne...khoobsurat nazm
ashish ने कहा…
अद्भुत अभिव्यक्ति क्षमता है आपके शब्दों में . बेहद प्रभावशाली रचना .
रूठना-मनाना जायज़ है
थोड़ा सा गुस्सा, थोड़ी सी माफ़ी,
ज़िन्दगी के ज़ाएके और मिजाज़
बदलने को काफी
कमाल की अभिव्यक्ति ......
गुस्से को दबा लेना भी ग़लत है ,
इसमें बह जाना भी ग़लत है।
सुन्दर अभिव्यक्ति , बधाई।
Ankur Jain ने कहा…
vah-vah...behad sundar!!!!!
रूठना-मनाना जायज़ है
थोड़ा सा गुस्सा, थोड़ी सी माफ़ी,
ज़िन्दगी के ज़ाएके और मिजाज़
बदलने को काफी

मगर लम्बी नाराज़गी,
ढेर सारा गुस्सा,
ना सेहत, ना रिश्ते,
ना दिल के चैन के लिये अच्छा
waah
गुस्सा आना गलत नहीं,
रह जाना गलत है,
इसे दिल में दबा लेना भी गलत है,
इसमें बह जाना भी गलत है ...

सच है इसमें बह जाने की बजे ... इसे बहा देना चाहिए .... सुन्दर रचना है ...
Kailash Sharma ने कहा…
गुस्सा आना गलत नहीं,
रह जाना गलत है,
इसे दिल में दबा लेना भी गलत है,
इसमें बह जाना भी गलत है

बहुत सुन्दर और सकारात्मक सोच..सुन्दर अभिव्यक्ति..
बहुत खूबसूरत बात कही आपने ..सुन्दर अभिव्यक्ति..

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अब बस हुआ!!

राज़-ए -दिल

वसुधैव कुटुम्बकम्