ऐसी अदा-ऐ-गुज़ारिश मुझमें है
ये पंक्तियाँ हर उस दिल के लिए हैं जो ख्वाब देखता है एक बेहतर कल के लिए और उसे पूरा करने के लिए वो खुद ज़िम्मेदारी उठा लेता है... दूसरा कोई कदम उठाये या ना उठाये वो पहला कदम उठा लेता है... और जब पहला कदम मजबूती और इमानदारी से बढाया जाता है खुदा के साथ-साथ कारवां भी साथ हो लेता है...
मेरा ही कदम पहला हो,
उस जहाँ की तरफ, जिसकी ख्वाहिश मुझमें है
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जो ख्वाब उन सूनी आँखों ने देखा ही नहीं,
उसे पूरा करने की गुंजाइश मुझमें है
खुदा को आसमानों में क्यूँ ढूंडा करूँ?
जब उसकी रिहाइश मुझमें है
एक कारवाँ भी साथ हो ही लेगा,
ऐसी अदा-ऐ-गुज़ारिश मुझमें है
खुदगर्ज़ी की लहर में बर्फ हुए जातें हैं सीने,
दिलों के पिघलादे, वो गर्माइश मुझमें है
मेरे ख्वाबों, मेरे अरमानों के लिए औरों को क्यों ताकूँ?
इनकी तामीर की पैदाइश मुझमें है
मौत पीठ थपथपाए अंजाम-ऐ-ज़िन्दगी यूँ हो,
खुद से ये फरमाईश मुझमें है
टिप्पणियाँ
जब उसकी रिहाइश मुझमें है
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Anjana (Gudia)ji
नमस्कार
काफी प्रभावी पंक्तियाँ है ..खुदा की रिहाइश .. बहुत सुंदर कहा है ...और यह सच भी है ...बहुत खूब
कभी "चलते -चलते" पर भी अपनी नजर- ए- इनायत करना
शुक्रिया
जब उसकी रिहाइश मुझमें है
aapne itna behatreenlikh diya ab aur kahne ko bacha kya hai ....
aapki lekhni ko salaam ..
aapki saari posts padhi .. aap bahut accha likhti hai .. meri badhayi sweekar kare.
vijay
poemsofvijay.blogspot.com
खुदगर्ज़ी की लहर में बर्फ हुए जातें हैं सीने,
दिलों के पिघलादे, वो गर्माइश मुझमें है..
लाजवाब....
क्या क्या बदल गया है ....
बहुत अच्छे, लिखते रहिये...
दिलों के पिघलादे, वो गर्माइश मुझमें है
bohot khoob....
मेरे ख्वाबों, मेरे अरमानों के लिए औरों को क्यों ताकूँ?
इनकी तामीर की पैदाइश मुझमें है
behtareen kalaam hai, its beautiful dear :)
दिल भी कमाल करता है, जब खाली-खाली होता है, भर आता है
toooo good...!
:)
जब उसकी रिहाइश मुझमें है।
अच्छी अभिव्यक्ति , बधाई
जब उसकी रिहाइश मुझमें है
बहुत अच्छे, वाह.. बहुत खूब
अच्छी अभिव्यक्ति , बधाई
उसे पूरा करने की गुंजाइश मुझमें है
....वाह.. बहुत खूब
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (9/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
apne to kamal kar diya
itna dard kanhi na meri ankhe chalak jayen
उसे पूरा करने की गुंजाइश मुझमें है ...
अंजना जी... ग़ज़ल की पहली लाइन ही सीमा रेखा के बाहर.
ऐसे-अदा-गुजारिश है मुझमे......
अदा - ए- गुजारिश......खूबसूरत ......अंदाज.
इनकी तामीर की पैदाइश मुझमें है ....
आत्मविश्वास से परिपूर्ण बहुत ही प्रेरक गज़ल..हरेक शेर लाज़वाब..बधाई
जब उसकी रिहाइश मुझमें है ..
बहुत खूब .. क्या बात कही है ... सच है भगवान सब के अंदर है बस पहचान करने की कोशिश होनी चाहिए ...