गरीबी गरीब की किस्मत है या समाज की ज़रुरत?

समाज में कई बुराइयां हैं, जिनमें से गरीबी भी एक है, मगर इसे एक आम इंसान ने शायद स्वीकार लिया है. तभी तो जब कोई बलात्कार होता है, या क़त्ल होता है तो काफी शोर मचता है, गुनाहगार को सज़ा मिले ना मिले ये और बात है. पर जब हम किसी को भीक मांगता देखते हैं, या किसी कमज़ोर व्यक्ति को सड़क पे सोता देखते हैं तो शोर नहीं मचाते... जब एक और गरीब ठण्ड से मर जाता है तो एक और नंबर की तरह दर्ज हो जाता है पर अखबार की सुर्खियाँ नहीं बनता. ऐसा क्यूँ होता है? 


गरीबी गरीब की किस्मत है 
या समाज की ज़रुरत?
गरीबी नहीं तो, अमीरी चल सके दो कदम,
उसकी ये जुर्रत?


सब बराबर हो जाएंगे तो,
क्या रह जाएगी लाला की औकात?
मेमसाब की चिल्लर कहाँ जाएगी?
पुण्ये के नाम पे कहाँ जाएगी खैरात?


अमीरी-गरीबी मिट जाती तो 
रह जाती सिर्फ इंसानियत,
पैसे की ताक-धिन फीकी होती,
नाचती फिर काबलियत!


लम्बाई चाहे जितनी हो,
सबका बराबर कद होता,
धरती माँ के घाव भरते,
पिता परमेश्वर गदगद होता  


http://trendsupdates.com/indian-economy-continues-to-prosper-yet-indian-children-starve-to-death/

पर नहीं! गरीबी पलती है,
अमीरी के टुकड़ों पर,
समाज नज़र फेर लेता है.
जब जिंदगियां तड़पती हैं सड़कों पर

टिप्पणियाँ

Bharat Bhushan ने कहा…
आपकी रचना की प्रशंसा हूँ. दूसरा पक्ष यूँ है. एक बैंक अधिकारी ज़िले में सरकार द्वारा ग़रीबों के लिए चलाई जा रही योजनाओं के बारे में जानकारी दे कर बड़े ज़िला अधिकारी के साथ जब कार में लौट रहे थे तब ज़िले के अधिकारी ने कहा था कि सर जी, इन लोगों को आप ग़रीब ही रहने दो तो बेहतर है. इन अधिकारियों की ऐसी नीयत है तो देश की बात करना फ़िज़ूल है. देश की जय बोलने के लिए गले में ताकत तो चाहिए न.
केवल राम ने कहा…
पर नहीं! गरीबी पलती है,
अमीरी के टुकड़ों पर,
समाज नज़र फेर लेता है.
जब जिंदगियां तड़पती हैं सड़कों पर
xxxx
वक़्त और हालात को शब्द दे दिए आपने ....मार्मिक पंक्तियाँ हैं यह ....शुक्रिया
S.M.Masoom ने कहा…
अंजना जी एक ऐसा विषय जिस पे लोग लिखते भी बहुत कम हैं. आज ब्लॉगजगत को आप कैसी ब्लोगर की आवश्यकता है. आप ने जो तस्वीर लगी है, सच यही है उसको देख आँख नाम हो जाती है. कहां एक तरफ खाने को बर्बाद किया जाता है, और कहां एक इंसान जानवरों की तरह जूठा खाने पे मजबूर है.
कडुवासच ने कहा…
... bahut sundar ... bhaavpoorn rachanaa !!!
बेनामी ने कहा…
बहुत ही कड़वा सच बयां किया है आपने इस कविता में....
बेनामी ने कहा…
mindblowing....!!!

bohot bohot hi sashakt rachna, aur kya khoob andaaz mein kahi gayi hai...killer...!!
The Serious Comedy Show. ने कहा…
cillar aur khairaat......laajawaab.
vandana gupta ने कहा…
पर नहीं! गरीबी पलती है,
अमीरी के टुकड़ों पर,
समाज नज़र फेर लेता है.
जब जिंदगियां तड़पती हैं सड़कों पर

यही आज का कड्वा सच है…………बेहद सशक्त और प्रशंसनीय रचना।
Kailash Sharma ने कहा…
पर नहीं! गरीबी पलती है,
अमीरी के टुकड़ों पर,
समाज नज़र फेर लेता है.
जब जिंदगियां तड़पती हैं सड़कों पर...

बहुत कटु सत्य आज के समाज का. बहुत भावपूर्ण सटीक अभिव्यक्ति..आभार
Deepak Saini ने कहा…
गरीब होना भी बहुत बडा पाप है।
और इस पाप की सजाये इतनी है कि जिन्दगी खत्म हो जाती है पर सजा नही

भावपूर्ण अभिव्यक्ति, प्रशंसनीय रचना।
समाज को आइना दिखाती प्रशंसनीय रचना।
Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…
सभी का शुक्रिया... काश हम गरीबी के खिलाफ जीत सकें... हम सभी इस लड़ाई में कुछ-न-कुछ कर सकते हैं... शुरुआत नज़रिया बदलने से हो और फिर छोटे-छोटे कदम जीत की तरफ!
गरीबी अमीर को कब तक गर्व कराती रहेगी।
tagde comment kiye hain ...samaj ki visangatiyon par... likhne ka andaj kafi talkh hai...ye talkhi banaye rakhiye...
…बेहद सशक्त और प्रशंसनीय रचना।
गुड्डोदादी ने कहा…
एक झन्नाटेदार रचना
गरीब नहीं पलते अमीरों से
अमीर ही गरीब का पेट काट अपना उदर पालते हैं
धन्यवाद
आपकी गुड्डोदादी चिकागो से
बेनामी ने कहा…
I am extremely inspired with your writing abilities and also with
the structure in your blog. Is that this a paid subject or did you modify it yourself?
Anyway keep up the excellent quality writing, it's rare to look a nice weblog like this one these days..
My web page : doubledirectory.org

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

चल उठ, ज़िन्दगी, चलते हैं! -2

अब बस हुआ!!

मम्मी