छोटे-छोटे क़दमों का रिवाज़

उस बयाबाँ के पीछे एक बगीचा था,
ये नहीं पता था
दरख्तों के उस झुण्ड के पीछे गुलों का गलीचा था,
ये नहीं पता था 

डर के मुड़ जाया करती थी
जंगल से घबराया करती थी,
डर को भी डराने एक तरीका था
ये नहीं पता था

फिर छोटे-छोटे क़दमों का सीखा रिवाज़ नया,
एक नई पगडण्डी का आगाज़ हुआ,
हर कदम डर को हौसले में बदल सकता था
ये नहीं पता था  

अब कोई बयाबाँ कभी जो दिल जो डराता है,
हौसले को सिर्फ बगीचा ही नज़र आता है,
हौसला अपने दिल में ही कहीं छिपा था,
यह नहीं पता था

टिप्पणियाँ

Bharat Bhushan ने कहा…
अब कोई बियाबाँ कभी जो दिल जो डराता है,
हौसले को सिर्फ बगीचा ही नज़र आता है,
हौसला अपने दिल में ही कहीं छिपा था,
यह नहीं पता था

उम्दा अभिव्यक्ति.
Sunil Kumar ने कहा…
हौसला अपने दिल में ही कहीं छिपा था,
अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई
केवल राम ने कहा…
अब कोई बयाबाँ कभी जो दिल जो डराता है,
हौसले को सिर्फ बगीचा ही नज़र आता है,
हौसला अपने दिल में ही कहीं छिपा था,
यह नहीं पता था
बहुत सुंदर कहा आपने ...अपने आप को कभी हम पहचानते ही नहीं ..अगर पहचान जाते तो यह भ्रम न होते ..शुभकामनायें
Deepak Saini ने कहा…
हौसला अपने दिल में ही कहीं छिपा था

बेहतरीन अभिव्यक्ति, बधाई
ZEAL ने कहा…
.

एक सुन्दर, मासूम सी रचना। बधाई

.
aapke haushle ko salam...........
khubsurat rachna........
अक्सर हमें ये नहीं पता होता है कि हमारे अंदर ही वो हिम्मत है जो हमें लड़ने की ताकत देती है ... सुन्दर रचना
अंजना जी
अभिवादन !

अब कोई बयाबां कभी जो दिल को डराता है,
हौसले को सिर्फ बगीचा ही नज़र आता है,
हौसला अपने दिल में ही कहीं छिपा था,
यह नहीं पता था

बहुत सुंदर भाव पिरोए हैं आपने रचना में , बधाई !

ऊर्जा हमारे अंदर ही होती है , पहचानने की आवश्यकता है

शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
हौसले को सिर्फ बगीचा ही नज़र आता है,
हौसला अपने दिल में ही कहीं छिपा था,

बहुत खूबसूरत बात कही है ...हौसला हो तो डर होता ही नहीं
vandana gupta ने कहा…
हौसला अपने दिल में ही कहीं छिपा था
जी बिल्कुल अन्दर ही छुपा होता है बस हम ही कोशिश नही करते…………सुन्दर अभिव्यक्ति।
Majaal ने कहा…
आप इस अंदाज़ में लिखतीं है,
ये खूब भाव निचोड़ती है,
ये हमें भी पता न था ...

लिखते रहिये ...
सच है जो कुछ भी है वो दिल के अन्दर ही है ... ये डर ... ये साहस ... अछा लिखा है ...
कडुवासच ने कहा…
... bahut sundar ... badhaai !!!
हौसला तो दिल में ही होता हैं, हम औरों में ढूढ़ते हैं।
फिर छोटे-छोटे क़दमों का सीखा रिवाज़ नया,
एक नई पगडण्डी का आगाज़ हुआ,
हर कदम डर को हौसले में बदल सकता था
ये नहीं पता था
बहुत सुन्दर.
M VERMA ने कहा…
अब कोई बयाबाँ कभी जो दिल जो डराता है,
हौसले को सिर्फ बगीचा ही नज़र आता है,

हौसले जब मुखरित होते हैं तो बगीचा न हो तो भी बना लेगा
rajesh singh kshatri ने कहा…
सुन्दर रचना...वाह !!!
mridula pradhan ने कहा…
man khush ho gaya padhkar.

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अब बस हुआ!!

राज़-ए -दिल

वसुधैव कुटुम्बकम्