माफ़ी को पनपने क्यूँ नहीं देते?
गलती से फिर एक ब्लॉग पढ़ा जिसमें दुसरे समुदाय को नीचा दिखाने के लिए जानकारी दी गयी थी. जानकारी दिखाने का उद्देश्य भी पूरा होता नज़र आया... टिप्पणियों के रूप में दोनों समुदाय के लोगों ने एक दुसरे को अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी....
दुखी मन में कई सवाल उठे, जो यहाँ प्रस्तुत हैं....
इतनी नफरत
जाने कहाँ से लाते हैं?
पता नहीं दूसरों को गिराते हैं,
या खुद गिर जाते हैं?
कहीं अपनी कमी छुपाने के लिए,
दूसरों की कमी तो नहीं निकाला करते?
या अपने डर भगाने के लिए,
दूसरों को तो नहीं डराया करते?
दूसरों के खोट निकालना
ज्ञान है या मुर्खता?
क्या इसी मुर्खता से अक्सर
पैदा नहीं होती है बर्बता?
ज़हर से भरी छींटा-कशी,
ऐसे अलफ़ाज़ कहाँ से लाते हैं?
इतनी कड़वाहट, हे इश्वर!
मरने मारने का जज़्बा कहाँ से लाते हैं?
कौन सा भगवान् है,
जो खुश होता है यूँ?
अगर दिल दुखता है उसका,
तो खुदा चुप रहता है क्यूँ?
माफ़ी को पनपने
क्यूँ नहीं देते?
सौहार्द को दिल में धड़कने
क्यूँ नहीं देते?
गले मिल जाओगे
तो क्या चला जाएगा?
नफरत का सिलसिला क्या
यूँ ही चलता चला जाएगा...?
टिप्पणियाँ
http://www.livehindustan.com/news/desh/national/39-39-140470.html
मगर अफ़सोस आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो एक दुसरे पर कीचड़ उछालने से बाज़ नहीं आ रहे हैं. मेरा ही वक़्त बुरा था की मैं एक ऐसे ब्लॉग पर पहुँच गयी और दिल दुखाया... ना जाने कितने लोगों की टिप्पणियां थीं, एक से एक अपमानजनक... बस इसी लिए इस कविता में अपना दर्द व्यक्त कर दिया...
मेरे ब्लॉग पर इस बार ....
क्या बांटना चाहेंगे हमसे आपकी रचनायें...
अपनी टिप्पणी ज़रूर दें...
http://i555.blogspot.com/2010/10/blog-post_04.html
जो खुश होता है यूँ?
अगर दिल दुखता है उसका,
तो खुदा चुप रहता है क्यूँ?
माफ़ी को पनपने
क्यूँ नहीं देते?
सौहार्द को दिल में धड़कने
क्यूँ नहीं देते?
सुंदर भाव...सुंदर रचना
ACHHEE RACHNA HAI ... SAHI SANDESH DETI ...
मेरे ब्लॉग पर मेरी नयी कविता कुछ फ़र्ज़ भी निभाना