थोड़ा सा बुद्धू है...

मैं कहती नहीं,
फिर भी वो समझता है,
पर दिखाता नहीं.
की सब समझता है

बड़ा प्यारा सा खेल है,
आखों और मुस्कुराहटों का मेल है,
चुप-चुप चलती जज़बातों की रेल है,
जाने कैसे अनकहे एहसास
समझता है?

जितना बस में है, करता है,
अपनों के लिए करता है, गैरों के लिए करता है,
ऐसा इंसान कहाँ मिला करता है?
जो हर किसी को
अपना समझता है

क्या क्या बताऊँ जो उसने दिया,
बंद खिड़की खोल, मेरे सितारे का पता दिया
ना जाने कब मुझे मुझसे मिला दिया,
मुझसे ज़्यादा वो
मुझको समझता है

इतनी सहनशक्ति जाने कहाँ से लाता है,
गुस्सा जेब में रख कर, हंसी बांटता फिरता है,
खुद भी नहीं जानता की वो एक फ़रिश्ता है,
थोड़ा सा बुद्धू है, खुद को
मामूली इंसान समझता है

टिप्पणियाँ

Bharat Bhushan ने कहा…
बहुत सुंदर प्रामाणिक अनुभूति की रचना. बधाई.
M VERMA ने कहा…
फरिश्ते खुद को तो फरिश्ते बतायेंगे नहीं ..
Majaal ने कहा…
आपकी रचना भी है भोली भली,
की हमें हुई अनुभूति प्यारी प्यारी,
आपकी और उस बुद्धू की ,
जमेगी खूब जोड़ी,
ऐसा 'मजाल' समझता है ...

लिखते रहिये ...
Sunil Kumar ने कहा…
सीधी साधी भाषा में बात कहने का ढंग , अच्छा लगा बधाई
ZEAL ने कहा…
.

थोड़ा सा बुद्धू है, खुद को
मामूली इंसान समझता है ..

Wonderful !

.
प्रेम के गूढताओं को सरलता से व्यक्त करती रचना।
Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…
सभी को धन्यवाद! यह पंक्तियाँ मेरे गुरु, प्रिय मित्र और पति श्री जोसेफ प्रेविट के लिए ... :-)
बेनामी ने कहा…
bahut hi khubsurat rachna...badhai...idhar bhi padharein...
http://i555.blogspot.com/
Khushdeep Sehgal ने कहा…
हमारे जैसा ही कोई लल्लू होगा...

जय हिंद...
इतनी सहनशक्ति जाने कहाँ से लाता है,
गुस्सा जेब में रख कर, हंसी बांटता फिरता है,
खुद भी नहीं जानता की वो एक फ़रिश्ता है,
थोड़ा सा बुद्धू है, खुद को
मामूली इंसान समझता है

AISA INSAAN PAR PYAAR KUON NAHI AAYE .... AISE BUDDHOO KI KADR KARNI CHAAHIYE ... GAHRE JAZBAAT KO AASAANI SE LIKHA HAI ...

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