कोई ऐसी टीचर दीदी होती, काश!

अखबारों में और बहुत सारे ब्लोग्स में भी पढ़ा है और दिल में जानती भी हूँ की हमारी बहुत सी मुश्किलों को बढाने में हमारे धार्मिक और राजनितिक नेताओं का काफी योगदान रहा है... जैसे बच्चों को सिखाने के लिए स्कूल होता है, वैसे ही इन्हें सिखाने के लिए भी कोई स्कूल होता तो मज़ा आ जाता!!! :-)


कोई ऐसी टीचर दीदी होती,  
सारे नेताओं को क्लास में बैठाती,
'लड़ाई-लड़ाई माफ़ करो, भगवान् का नाम याद करो', ऎसे पाठ पढाती


जब टिफिन की रोटी अच्छी लगती थी,
बिन जाने हिन्दू की है या मुस्लिम की,
वो उन्हें उस बचपन की याद दिलाती 


सफ़ेद, हरा और नारंगी,
मिल के रहते जैसे संगी,
वो उन्हें तिरंगे का मतलब समझाती


जो नेता फिर भी झगड़ें,
स्वार्थ को जो रहें जकड़ें, 
वो उनको मुर्गा बनाती :-)


धीरे-धीरे नेता सुधर जाते,
भाईचारे के पथ में हमारे अगुवा बन जाते,
टीचर दीदी ऐसे पाठ पढाती 





टिप्पणियाँ

M VERMA ने कहा…
सफ़ेद, हरा और नारंगी,
मिल के रहते जैसे संगी,
वो उन्हें तिरंगे का मतलब समझाती

क्या भाव है ! बहुत सुन्दर
Bharat Bhushan ने कहा…
यह देश के लिए सबसे बड़ी इस शुभकामना में हम सभी आपके साथ हैं.
Sunil Kumar ने कहा…
क्यों अपना समय ख़राब कर रही है अंधे के आगे रोये .......
Archana Chaoji ने कहा…
पर..क्या पता शायद टीचर दीदी भी नेता बन जाती.....
Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…
@ Archana ji: हम संगीता स्वरुप जी जैसी टीचर दीदी लायेंगे, वो अपना लक्ष्य नहीं भूलेंगी... :-)
काश ऐसा कोई अभी भी मिल जाये।
काश सच ही ऐसा कोई शिक्षक होता ...या कक्षा लगायी जाती ...

और हाँ ...मुझ पर इतना विश्वास ???? मन को सुकून पहुंचा गया ...इतने विश्वास के लिए शुक्रिया छोटा शब्द है ...फिर भी शुक्रिया .
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना ( हे इंसानियत तुझे मेरी परवाह ही नहीं ) 28 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

http://charchamanch.blogspot.com/
Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…
शुक्रिया संगीता जी, आपके प्रोत्साहन के लिए. सभी का धन्यवाद की कविता को इस लायक समझा गया... काश ऐसी कविताओं के ज़रिये हम, चाहे थोड़ा ही, कुछ तो बदलाव ला सकें...
एक कहावत है ..भैंस के आगे बीन बजावै, भैंस खड़ी पगुराय...लेकिन आपकी कल्पना अच्छी है... हमें आशावदी तो होना ही चाहिए।
Satish Saxena ने कहा…
पहली बार आपको पढ़ रहा हूँ , महिला लेखकों में शायद ही कोई इस विषय पर लिखता है ! इस सुंदर रचना से आपकी भावनाओं को समझा जा सकता है ! मेरी हार्दिक शुभकामनायें
Mahak ने कहा…
भावों को क्या अमेजिंग रूप प्रदान किया है आपने ,बहुत बढ़िया ,हमारी भी ऐसी ही टीचर दीदी के होने की इच्छा है
कोई ऐसी टीचर दीदी होती,
सारे नेताओं को क्लास में बैठाती,
'लड़ाई-लड़ाई माफ़ करो, भगवान् का नाम याद करो',
ऐसा पाठ पढाती

वाह ..

बहुत खूब !!
Dudhwa Live ने कहा…
दीदियों को तो पुरूषवादी समाज ने दबा रखा हैं, और ज्यादातर उसके! आधिपत्य को स्वीकार कर चुकी हैं...इस पर विमर्श की आवाश्यकता है
Akanksha Yadav ने कहा…
काश ऐसा होता...आपकी कल्पना-शक्ति की दाद देती हूँ. कभी 'शब्द-शिखर' पर भी पधारें.
भावों को क्या अमेजिंग रूप प्रदान किया है आपने ,
हरकीरत ' हीर' ने कहा…
जब टिफिन की रोटी अच्छी लगती थी,
बिन जाने हिन्दू की है या मुस्लिम की,

आपने स्कूली दिनों की याद दिला दी .....!!
पहली बार आपको पढ़ रहा हूँ , मेरी हार्दिक शुभकामनायें

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