अपनी ना जात एक है ना धर्म एक
स्नेहू के लिए!
तुझ से बात करके रस्ते निकलने लगते हैं
गुप अँधेरे में भी तेरे शब्दों के दिए जलने लगते हैं
तू वहां हंस देता है, यहाँ सुबह मुस्कुराने लगती है,
तेरी बातों में हर गाँठ खुलने लगती है,
छोटा सा है पर मेरा इतना ख्याल करता है,
आदर की सीमा बिना लांघे, जब चाहे मज़ाक उड़ाया करता है
अपनी ना जात एक है ना धर्म एक,
फिर भी बांधे है कोई बंधन नेक
बेटा है, भाई है, दोस्त है या फिर कोई फ़रिश्ता है?
तू ही बता दे यह कैसा अजब सा रिश्ता है?
तुझ से बात करके रस्ते निकलने लगते हैं
गुप अँधेरे में भी तेरे शब्दों के दिए जलने लगते हैं
तू वहां हंस देता है, यहाँ सुबह मुस्कुराने लगती है,
तेरी बातों में हर गाँठ खुलने लगती है,
छोटा सा है पर मेरा इतना ख्याल करता है,
आदर की सीमा बिना लांघे, जब चाहे मज़ाक उड़ाया करता है
अपनी ना जात एक है ना धर्म एक,
फिर भी बांधे है कोई बंधन नेक
बेटा है, भाई है, दोस्त है या फिर कोई फ़रिश्ता है?
तू ही बता दे यह कैसा अजब सा रिश्ता है?
टिप्पणियाँ
गुप अँधेरे में भी तेरे शब्दों के दीप जलने लगते हैं
तू वहां हंस देता है, यहाँ सुबह मुस्कुराने लगती है,
तेरी बातों में हर गाँठ खुलने लगती है,
सुन्दर भाव और अच्छी कृति, पढ़ कर अच्छा लगा
मैं भी मुस्करा देता हूं.. :)
आदर की सीमा बिना लांघे, जब चाहे मज़ाक उड़ाया करता है
anjana ji very well wrote nice