कभी साथ बैठें तो हमदिली से बातें हों

ज़रूरी नहीं की जब हम सही हों,
तो वो गलत ही हों,

आमने-सामने से तो सिक्के के अलग-अलग पहलु ही दिखते हैं,
कभी साथ बैठें तो हमदिली से बातें  हों

गुस्से से तो अक्सर बात बिगड़ ही जाती है,
कभी नज़र मिलाइए जब वो मुस्कुराते हों,

मिट्ठाइयां ज़रा और मीठी हो जातीं हैं,
जब दिवाली और ईद मिल के मनाते हों

अपने लिए तो इबादतगाह सब बनाते लेते हैं,
इंसानियत तो तब है जब हिन्दू मज्जिदें और मुसलमा मंदिर बनाते हों

टिप्पणियाँ

"मिट्ठाइयां ज़रा और मीठी हो जातीं हैं,
जब दिवाली और ईद मिल के मनाते हों"

क्या बात है!!
Udan Tashtari ने कहा…
बहुत उम्दा!
Smart Indian ने कहा…
इंसानियत तो तब है जब हिन्दू मज्जिदें और मुसलमा मंदिर बनाते हों
काश! ऐसा होता तो कितना अच्छा होता!
Vinashaay sharma ने कहा…
बहुत सही कहा ।

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