कभी थोड़ा ठहरो...

कभी थोड़ा ठहरो,
महसूस करो उस हवा को जो बालों को सहलाती है
कभी ज़रा रुक कर,
देखो उस बदली को जो ठंडी बूंदे बरसाती है

हर रोज़ अपने साथ वही रोज़ की खिच-खिच लाता है,
गौर करो, वो कभी-कभी अपने साथ इन्द्रधनुष भी लाता है,
कभी जी भर कर,
निहारो उस 'रंग बिरंगी एकता' को जो सारा आकाश भिगाती है

हर रोज़ हड़बड़ी में काम पे निकल जाते हैं,
रास्ते के फूल आपकी एक नज़र को तरस जाते हैं ,
कभी थम कर,
साँसों में भर लो उस खुशबु को जो सारी क्यारी महकाती है

टिप्पणियाँ

bhn anjnaa ji khne ko to aap gudiya ho lekin jo pnktiyaa aapne likhi hen inki pripkvtaa aapko gudiya khalaane pr sndeh peda krti hen itnaa behtrin lekhn itnea behtrin flsfaa rngin vichaar or maahol ko khushnumaa bnaane ke liyen bdhaayi. akhtar khan akela kota rajsthan
Anamikaghatak ने कहा…
bahut achchha likha hai ................umda
Rohit Singh ने कहा…
अच्छी कविता.....समय निकाल कर आसपास लोग नजर नहीं डालते.....
हास्यफुहार ने कहा…
बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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