बहुत सुसंगत शब्द नहीं है मेरे पास पर कहना चाहती हूँ.... अगर नहीं कहूँगी तो आँसू नहीं थमेंगे ... इंसानों की यह भद्दी तस्वीर पहले भी देखी है, औरत की आबरू लुटते पहले भी देखी है, आज फिर दिल क्यूँ टूट रहा है, जब इंसानियत की अर्थी पहले भी देखी है? आदमी की ताकत और हैसियत औरत की योनि में गिरती पहले भी देखी है, औरत भी औरत को सताती, कुचलती, और हराती पहले भी देखी है! अभागी लाशों पर राजनीति, और बलात्कारियों को शह पहले भी देखी है, आज फिर दिल क्यूँ टूट रहा है, जब हैवानियत की जय-जयकार पहले भी देखी है! काश मैं उन बहनों से मिल सकती, उन्हें गले लगा के रो सकती, उन्हें कह सकती के: प्यारी बहन, याद रख तेरी आबरू तेरे जिस्म से बहुत गहरी है, सभ्य तुझे उसी इज़्ज़त से देखेंगे, जैसे पहले भी देखा है, तू फिर आँख मिलाएगी इस समाज से, जिसकी वहशी आँखों में तूने पहले भी देखा है! दोस्तों, कब तक सहेंगे हम ये सब, कब तक कहेंगे, यह हालत तो पहले भी देखी है, हाँ, बलात्कार को जंग का हथियार पहले भी देखा है, मगर हमने अपनी एकता ताकत भी तो पहले भी देखी है! आओ, मिल जाएं हम सब, फिर लाएं वही एकता, जो हमने पहले भी देखी ह
टिप्पणियाँ
http://ruftufstock.blogspot.com/
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं
अति सुन्दर, सटिक, एक दम दिल कि आवाज.
कितनी बार सोचता हु कि इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है.
अपनी ढेरों शुभकामनाओ के साथ
shashi kant singh
www.shashiksrm.blogspot.com
bhavo se paripurna rachna