एक नयी लड़ाई शुरू करें?

बहुत सारे सवाल मन में उठते रहते  हैं... ना ही मन को चैन आता है ना ही सवालों को... क्यूँ हम सब गलतियाँ करते हैं और वो भी ज़्यादातर जानबूझ कर? गलतियों से इंसान का क्या रिश्ता है? छोटी छोटी गलतियाँ कई बार बड़ी भी हो जाती हैं, फिर वो सिर्फ हमें ही नहीं दूसरों को भी परेशान करती हैं. और जब गलतियाँ बड़ी हो जाती हैं तो उनसे पीछा छुड़ाना भी मुश्किल हो जाता है. काश हम उन्हें शुरू में ही ठीक कर पाते. काश हम अपनी गलतियों से सीखे सबक हमेशा याद रख पाते और उन्हें दोहराते नहीं.

मुश्किल तब और भी बड़ जाती है जब हम दूसरों की गलतियाँ माफ़ नहीं कर पाते. खुद तो गलतियाँ करते हैं पर दुसरे अगर गलती करें तो बर्दाश्त नहीं होता. मौका देख नफरत और गुस्सा अपना अपना झंडा हमारी ज़िन्दगी में गाड़ देते हैं. ऐसा क्यूँ? काश हम दूसरों की गलतियों को भी अपनी गलतियों की तरह समझ पाते और उन्हें माफ़ कर पाते और हंस कर ज़िन्दगी आगे बड़ जाती :-)

कभी कभी लगता है की यह सब इश्वर का खेल है क्युंकी कहते हैं की उसकी मर्ज़ी के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता. अगर हम गलतियाँ नहीं करते तो हम उसके बराबर बन जाते. और अगर हमेशा हम सबकी गलती माफ़ कर देते तो उसकी दया की महिमा से वंचित रह जाते. पर कभी कभी इश्वर की दया और क्षमा कम क्यूँ हो जाती है? कुछ लोगों को बाकी लोंगों से ज्यादा क्यूँ सहना पड़ता है? बिमारी और गरीबी की दोस्ती भी बड़ी पक्की है, जहाँ एक जाती है दूसरी भी दौड़ी दौड़ी वहीँ क्यूँ पहुँच जाती है? और फिर अगर इस सबके बीच में नफरत और गुस्से को अपना खेल खेलने का मौका मिल जाए तो फिर कहना ही क्या. चारों ओर त्राहि त्राहि. ऐसे उन बच्चों का इश्वर क्या अपने कलेजे पे पत्थर रख लेता है? उन बिलखते हुए बच्चों के लिए उसे दया तो आती होगी. पर वो दया नज़र क्यूँ नहीं आती जब एक इंसान दुसरे इंसान की गलती की सज़ा उसके बच्चों को देता है? क्यूँ होता है यह सब?

हम इस सब से क्या सीख लेते हैं? इन हालातों में हमारी क्या ज़िम्मेदारी है? काश हम गलतियों की सही परिभाषा समझ पाते. काश हम समझ पाते की हर बार एक दुखी के दुःख को नज़रंदाज़ करके अपने जीवन में मस्त रहना भी एक गलती है. यह सब नज़रंदाज़ करके अपने अपने छोटे-छोटे झगड़ों में पड़े रहेना भी गलती है. आज सबसे बड़ा सवाल यह है की एक दुसरे से नाराज़, एक दुसरे के धर्म या फिर सोच को नीचा मान कर, अपने-अपने घरों में हाथ पे हाथ रख कर बैठे रहें या फिर एक हो जाएं और दुसरे पाले में गरीबी, बीमारियाँ, दुराचार और शोषण को रख कर, एक नयी लड़ाई शुरू करें?

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अब बस हुआ!!

राज़-ए -दिल

वसुधैव कुटुम्बकम्